Tuesday 16 December 2014

मासूमों का नरसंहार 

मन बहुत दुखी है आज, क्या गुनाह किया था उन 120 मासूमों ने यही के वो एक उज्जवल भविष्य के सपने को सच में बदलने के लिए विद्धया के मंदिर गये थे या फिर की वो सैन्य अधिकारियों के बच्चे थे जिसमे उनका कोई कसूर नही था I

क्रूरता की भी कोई सीमा होती है पेशावर के स्कूल में तालिबानियो ने आज जो किया वह दिखलता है की कोई राष्ट्र कितने भी दावे कर ले अपनी आत्मनिर्भरता और शक्ति को लेकर लेकिन मूलभूत प्रश्न यह है की क्या वो अपनी आन्तरिक सुरक्षा को लेकर संवेदनशील है Iमैं भी यह मानता हूँ की यह उचित समय नही है की इस बात का खंडन किया जाए की कौन कितना शक्तिशाली है लेकिन क्या करूँ मन में गुस्से की चिंगारी है की निहत्ते मासूमों की जान ले ली गयी और सरकार विश्व से सहयता की अपील करने के अलावा कुछ भी नही कर सकी यह अपील तो पाकिस्तान सरकार को कुछ वर्षो पहले ही करनी चाहिए थी शायद यह बीज़ मुशर्रफ ने ही बोई थी जिसका ख़ाम्याजा आज पाकिस्तान को ही सबसे ज़्यादा भुगतना पड़ रहा है


अब तो राजनीतिक पंडितों और विश्लेषको को कम से कम इस विषय का ज्ञान हो जाए की आतंकवाद का कोई धर्म नही होता है, बहुत पीड़ा होती है जब लोग इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ते हैं


आशा करता हूँ की पाकिस्तान सरकार अंतरराष्ट्रिया समाज की सहयता लेकर तालिबानी आतंकवादियों का सफ़ाया करने की मुहिम जल्द ही शुरू करेI